Followers

Saturday 28 September 2013

दौर-ए-फ़िराक ~ 'अनेकवर्णा'

रात ने धीरे धीरे अपने ज़ेवर उतारे.. आधे-चाँद की बाली, संभाल कर सिरहाने रख दी है.. सितारों के 'मुकैश' से सजा आँचल तहा दिया.. और स्याह जुल्फों को एक जूड़े में कस लिया है.. नींद भरी रतनार आँखों को मलते मलते, अपनी खिड़की पर भोर का पर्दा खींच लिया.. जिद्दी उबासियाँ समेट अपनी हथेलियों में.. अंगड़ाइयों से बदन तोड़ती.. रुके क़दमों से, पार उफ़क़ के, चल पड़ी है.

उसे जाता देख अबाबीलों ने पुरज़ोर शोख़ अंदाज़ में पुकारा और देर तक 'शब्बा ख़ैर' कहती रहीं.. भला नींद में कब किसे कुछ सुनाई देता है.. आयें, आफ़ताब मियाँ आ कर अपनी क़ायनात संभालें.. घंटों आँखों में गुज़ार, रात अब सोने चली है..

आफ़ताब का इंतज़ार उसने मुसल्सल किया है.. सदियों से वक़्त के एक टुकड़े के दोनों छोरों पर.. फ़कत एक झलक की आस लिए.. लम्हा भर को रोज़ ठिठक जाती है.. और जाने क्या सोच कर फिर चल देती है.. दिन के अफ़सानों का उसे क्या करना.. उसके आगे तो स्याह लम्बी रात पड़ी है..

वक़्त के इस टुकड़े के उस छोर पर.. सितारों की चुनर ओढ़े, सजी-धजी रात फिर आएगी.. फिर खुले होंगे स्याह गेसू.. कानों में सजा, चाँद हंसेगा.. और वक़्त, पल भर को फिर ठिठक जायेगा.. आफ़ताब, फौरी तौर से मिलने को फिर आएगा.. और आते ही, चला जायेगा...................................

और एक बार फिर.. चंद खाली घंटे अपने हाथों में लिए.. शायद, रात यही सोचेगी.. 'अल्लाह! ये दौर-ए-फ़िराक कब जायेगा?'........

Wednesday 11 September 2013

मैं चारुलता नहीं बनना चाहती



मैं भूल जाना चाहती हूँ..

उदास पीले कनेर का ज़हरीला सौन्दर्य.. 

मैं ऊब जाना चाहती हूँ.. 
तुममें.. अपनी इस दिन-रात की लिप्तता से..

निजात मांगती हूँ मैं..
इस खिजा देने वाली आधी अधूरी टीस से..

खुद को तलाशती.. मैं..
खो जाना चाहती हूँ.. इन अफनाए हुए जंगलों में

मैं जुगनुओं को पुकार.. उन्हें गिनना चाहती हूँ..
चमत्कारों में फिर से यकीन करने के लिए.. 

एक बार फिर से बन जाना चाहती हूँ.. 
पति के रुमाल.. बेटी की जुराबें संभालती गृहस्थन

बार-बार पनाह मांगती हूँ..
ऊन के गोलों.. रिश्तों की भीड़.. व्यंजनों की विधि में..

आजकल अक्सर ढूंढती रहती हूँ.. 
अपना वह दशकों पुराना खोल.. उसकी दमघोंटू 'सुरक्षा'..

मैं खुद से मिल कर बहुत परेशान हूँ..
और अब तो.. मेरा खोल भी सूखकर सिकुड़ गया है..

मैं कभी भी 'चारुलता' नहीं बनना चाहती थी..


फिर ऐसा क्यों हो गया???